Sunday, 31 May 2020

Shree Hanuman Chalisa In English And With Description In English


Shri Guru Charan Saroj Raj 
Nij mane mukure sudhar 
Varnao Raghuvar Vimal Jasu
Jo dayaku phal char,

After cleansing the mirror of my mind with the pollen
dust of holy Guru's Lotus feet. I Profess the pure,
untainted glory of Shri Raghuvar which bestows the four
fold fruits of life.(Dharma, Artha, Kama and Moksha).

Budhi Hin Tanu Janike
Sumirau Pavan Kumar
Bal budhi Vidya dehu mohe
Harahu Kalesa Vikar.  

Fully aware of the deficiency of my intelligence, I
concentrate my attention on Pavan Kumar and humbly
ask for strength, intelligence and true knowledge to 
relieve me of all blemishes, causing pain.

श्री हनुमान चालीसा हिंदी में

दोहा :
 
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।। 
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।। 


चौपाई :
 
जय ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।1।
 
रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।2।
 
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।3।
 
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।4।
 
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै।5I
 
संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।6।
 
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।7।
 
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।8।
 
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।9।
 
भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।10।
 
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।11।
 
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।12।
 
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।13।
 
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।14।
 
जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।15।
 
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।16।
 
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।17।
 
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।18।
 
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।19।
 
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।20।
 
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।21।
 
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना।22।
 
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।23।
 
भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।24।
 
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।25।
 
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।26।
 
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।27I
 
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।28।
 
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।29।
 
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।30।
 
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।31।
 
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।32।
 
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।33।
 
अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।34।
 
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।35।
 
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।36।
 
जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।37।
 
जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।38।
 
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।39।
 
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।40। 
 
दोहा :
 
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

Thursday, 28 May 2020

शिव तांडव हिंदी में



जटा टवी गलज्जलप्रवाह पावितस्थले गलेऽव लम्ब्यलम्बितां भुजंगतुंग मालिकाम्‌।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिव: शिवम्‌ ॥१॥
जटाकटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वल ल्ललाटपट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम: ॥२॥
धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुर स्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणी निरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥
जटाभुजंगपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा कदंबकुंकुमद्रव प्रलिप्तदिग्व धूमुखे।
मदांधसिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूत भर्तरि ॥४॥
सहस्रलोचन प्रभृत्यशेषलेखशेखर प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरां घ्रिपीठभूः।
भुजंगराजमालया निबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥
ललाटचत्वरज्वल द्धनंजयस्फुलिंगभा निपीतपंच सायकंनम न्निलिंपनायकम्‌।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥
करालभालपट्टिका धगद्धगद्धगज्ज्वल द्धनंजया धरीकृतप्रचंड पंचसायके।
धराधरेंद्रनंदिनी कुचाग्रचित्रपत्र कप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥
नवीनमेघमंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर त्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥
प्रफुल्लनीलपंकज प्रपंचकालिमप्रभा विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌।
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥
अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥
जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुरद्ध गद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धि मिध्वनन्मृदंग तुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥
दृषद्विचित्रतल्पयो र्भुजंगमौक्तिकमस्र जोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥

कदा निलिंपनिर्झरी निकुंजकोटरे वसन्‌ विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥१३॥
इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहिनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥